Dr MAHENDRA KUMAR JAIN "MANUJ"द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी

द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी


दिनांक १५ एवं १६ फरवरी २०२० को द्विदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न हुई। उद्घाटन सत्र १५ फरवरी को प्रातः ६ बजे सम्पन्न हआइस सत्र की अध्यक्षता विद्वत परिषद् के उपाध्यक्ष डॉसनतकुमार जैन जयपुर ने की, संचालन विद्वत्परिषद् के महामंत्री संगोष्ठी के संयोजक डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज', इन्दौर ने किया। __ मंगलाचरण, आचार्यद्वय का चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलनआचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के पाद-प्रक्षालन, शास्त्र भेंट उपरान्त विश्वशान्ति निर्मल ध्यान केन्द्र, गिरनार ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री ज्ञानचंद जैन-मुंबई ने आगत विद्वानों के स्वागत में स्वागत भाषण देते हुए देश के कोने कोने से पधारे विद्वानों का स्वागत तिलक, माल्यार्पणअंगवस्त्र व किड प्रदान करके किया। डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुजकार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की, डॉ. नीलम जैन-पुणे ने अपना वक्तव्य देते हुए गिरनार गौरव आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के उपकार व कतित्व पर प्रकाश डाला। इस उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष के अध्यक्षीय वक्तव्य के उपरान्त आचार्यश्री का प्रवचन हुआ। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र अपराह्न २ बजे प्रारंभ हुआ। जिसकी अध्यक्षता डॉ नरेन्द्रकुमार जैन, गाजियाबाद ने की, संचालन डॉ. नीलम जैन, पुणे ने किया। इस सत्र में प्रो. प्रेम सुमन जी, उदयपुर के “अपभ्रंश साहित्य में अंकित नेमिनाथ चरित एवं गिरनार।" आलेख का , डॉ. सरोज जैन, उदयपुर के “ऊर्जयंत गिरनार विषयक प्राकृत के सन्दर्भ।" का वाचन किया गया। पं. लोकेश जैन-गनोडा (राज.) ने संस्कृत-आलेख “तीर्थरक्षा-शिरोमणिश्रमणरत्नः गिरनार-गौरवः” विषय पर किया, श्रीमती कामनी जैन-जयपुर ने “आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के पट्टप्रवर्तक प्रशममूर्ति आचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) द्वारा कुरीतियों का खण्डन।" विषय पर, श्रीमती आशा जैन, इन्दौर ने “आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज और उनका पट्टाचार्य पद" विषय पर, इंजी. दिनेश जैन, दुर्ग ने “आचार्य श्री निर्मलसागर जी एवं उनकी पूर्व परंपरा", विषय पर और पं. शीलचंद शास्त्री, ललितपुर, ने "संगति सच्चे साधु की" विषय पर अपने आलेख का वाचन किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में आलेखों की समीक्षा के उपरान्त पूज्य मुनिश्री नयनसागर जी महाराज व आचार्यश्री निर्मलसागर जी महाराज के प्रवचन हुए। तृतीय सत्र सायं ७ बजे प्रारम्भ हुआ। मंगलाचरणोपरान्त अध्यक्षता हेतु प्रतिष्ठाचार्य पं. विनोदकुमार जैन-रजवांस का मनोनयन हुआ, पं. सुकुमाल चंद जैन ने सारस्वत आतिथ्य गृहण किया, इंजी. श्री दिनेश जैन -भिलाई ने सत्र का संचालन किया। इस सत्र में ग्यारह आलेखों का वाचन हुआ। डॉ. शोभालाल जैन, जयपुर ने “भारतीय वाड्.मय में भगवान नेमिनाथ और गिरनारऊर्जयन्तगिरि पर्वत' विषय पर, पं. भीमराव हेमगिरे ने “श्रुतस्कंध अहिंसा रथ : काश्मीर से कन्याकुमारी तक २४ मई २००४ से ८० हजार किलोमीटर की रथयात्रा उपलब्धि व संस्मरण।" विषय पर, डॉ. ममता जैन-पुणे ने “नारी का गौरव गिरि गिरनार आचार्य श्री निर्मलसागर जी के आशीषांचल में" विषय पर, पं. प्रशांत जैन, मडावरा ने “परम्पराचार्य श्री शांतिसागर जी (छाणी) द्वारा बुन्देलखण्ड में धर्म प्रभावना" पर, पं. रजनीश जैन, बनेठा ने “गिरनार तीर्थ संरक्षणार्थ समर्पित संत" विषय पर, पं. कोमलचंद जैन, वाराणसी ने “महापुराण साहित्य में भगवान नेमिनाथ के सन्दर्भ।" विषय पर, डॉ. सुशील जैन, कुरावली ने “आचार्य श्री निर्मलसागर जी विश्व की महान विभूति" पर, ब्र. रमेश जी, सहारनपुर ने “आचार्य परमेष्ठि आगम के आलोक में।" पर, डॉ. बाहुबली जैन, किशनगढ़ ने 'आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज (छाणी) की राजस्थान प्रांत में प्रभावना एवं ऐतिहासिक ब्यावर चातुर्मास।" पर और सारस्वत आतिथ्य वक्तव्य में पं. सुकुमाल जी, सहारनपुर ने “सामाजिक समरसता संवर्धन में और समाजोत्थान में श्रमणों का अवदान : आचार्य श्री निर्मलसागरजी के आलोक में।" पर और श्रीमती सुमनलता जैन, सागर, ने “गिरनार तीर्थ संवर्धन में आचार्य श्री निर्मलसागर जी का अवदान" विषय पर आलेख वाचन किया। अंत में सत्र संचालक ने आभार प्रदर्शित किया।